A SIMPLE KEY FOR BAGLAMUKHI SADHNA UNVEILED

A Simple Key For baglamukhi sadhna Unveiled

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५.ॐ ह्लीं श्रीं उं श्रीवश्यायै नमः -दक्ष-कर्णे (दाएँ कान में) ।

प्रेतस्थां बगला-मुखीं भगवतीं कारुण्य-रूपां भजे ।।

सत्ये काली च श्रीविद्या, कमला भुवनेश्वरी ।

अर्थात् ‘शत्रु के विनाश के लिए कृत्या-विशेष भूमि में जो गाड़ देते हैं, उन्हें नाश करनेवाली वैष्णवी महा-शक्ति को वलगहा कहते हैं।’ यही अर्थ वगला-मुखी का भी है। ‘खनु अवदारणे ‘ इम धातु से मुख’ शब्द बनता है, जिसका अर्थ मुख में पदार्थ का चर्वण या विनाश ही अभिप्रेत होता है। इस प्रकार शत्रुओं द्वारा किए हुए अभिचार को नष्ट करनेवानी महा-शक्ति का नाम ‘बगला-मुखी’ चरितार्थ होता है। श्रीमहीधर ने इसका स्पष्ट अर्थ ऐसा किया है-

कर-न्यास – ॐ ह्रां  अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः ।

पीत-बन्धूक-पुष्पाभां, बुद्धि-नाशन-तत्पराम् ।

‘देहि-द्वन्द्वं सदा जिह्वां, पातु ‘शीघ्रं’ वचो मम । कण्ठ-देशं’ मनः ‘ पातु,’वाञ्छितं’ बाहु-मूलकम् ।।३ 

४. ॐ ह्लीं श्रीं ईं श्रीमोहिन्यै नमः-वाम-नेत्रे (बाईं आँख में) ।

वैरि-जिह्वा-भेदनार्थं , छूरिकां विभ्रतीं शिवाम् । पान-पात्रं गदां पाशं, धारयन्ती भजाम्यहम् ।॥

‘अदितिः’ अविनाशी-स्वरूप देव-माता ‘उपस्थे’ हम उपासकों के समीप, ‘शिवा’ कल्याण-स्वरूपवाली, ‘अस्तु’ हो।

श्मशाने जल-मध्ये च, भैरवश्च सदाऽवतु । baglamukhi sadhna द्वि-भुजा रक्त-वसनाः, सर्वाभरण-भूषिताः ।

‘अस्य सहसः ईशाना’ सारे जगत् पर जिसका शासन है, उन ‘विष्णु-पत्नी’ अर्थात् विष्णु की रक्षा करनेवाली, वृहस्पति, मात-रिश्वा और वायु-रूपवाली, ‘संध्वाना’ शब्द-तत्त्व का कारण, ‘वाता’ वात-क्षोभ को शान्त करनेवाली, ‘अभितो गृणन्तु’ हमें उभय-लोक में भुक्ति एवं मुक्ति अर्थात् ‘स्वर्गापवर्ग-प्रदे’ प्रदान वरनेवाली श्रीबगला विद्या को बताता है।

‘वेद’ एवं ‘तन्त्र’ के सन्दर्भ में : सिद्धि-प्रदा श्रीबगला-मुखी “राष्ट्र-गुरु’ श्री स्वामी जी महाराज

जङ्घा-युग्मे सदा पातु, बगला रिपु-मोहिनी । ‘स्तम्भये’ ति पदं ‘पृष्ठं, पातु वर्ण-त्रयं मम ।९

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